विधु-वधु
प्रथम हास भृकुटि-विलास
चन्द्र-हृदय पर छा गई
अम्बर के आँगन में देखो
विधु-वधु वह आ गई।
बरसाती बादल से धुलकर
चन्दन का उबटन मलकर
मूर्तिमान हो प्रकट गए हैं
स्वयं रति के गुण रलकर
एक पलकभर लखकर ही
स्तब्ध हुए तरु-पादप-दल
शर्मीले से नयन झुकाकर
देख रहे अवनी का तल
झुरमुट में झींगुर की टोली
गीत प्रणय का गा गई
अम्बर के आँगन में देखो
विधु-वधु वह आ गई।
आओ तो ओ आली यामा
प्रिय-मिलन कुछ करो सुलभ
मन मे कुछ भीति सी है
पर तन-यौवन है रहा पुलक
सखी निशा आती धीरे से
काला सा आँचल डाले
ओट किए संध्या को तब
आगे कितने दीपक बाले
सकुचाती सी सहमी सहमी
प्रिय-स्पर्श वह पा गई
अम्बर के आँगन में देखो
विधु-वधु वह आ गई।
अरविन्द सांध्यगीत
प्रथम हास भृकुटि-विलास
चन्द्र-हृदय पर छा गई
अम्बर के आँगन में देखो
विधु-वधु वह आ गई।
बरसाती बादल से धुलकर
चन्दन का उबटन मलकर
मूर्तिमान हो प्रकट गए हैं
स्वयं रति के गुण रलकर
एक पलकभर लखकर ही
स्तब्ध हुए तरु-पादप-दल
शर्मीले से नयन झुकाकर
देख रहे अवनी का तल
झुरमुट में झींगुर की टोली
गीत प्रणय का गा गई
अम्बर के आँगन में देखो
विधु-वधु वह आ गई।
आओ तो ओ आली यामा
प्रिय-मिलन कुछ करो सुलभ
मन मे कुछ भीति सी है
पर तन-यौवन है रहा पुलक
सखी निशा आती धीरे से
काला सा आँचल डाले
ओट किए संध्या को तब
आगे कितने दीपक बाले
सकुचाती सी सहमी सहमी
प्रिय-स्पर्श वह पा गई
अम्बर के आँगन में देखो
विधु-वधु वह आ गई।
अरविन्द सांध्यगीत